अनोखा प्रेम रवि सागर का
मैने रवि ,सागर को देखा इक दूजे को निहारते हुए।
मैने देखा समन्दर में,रवि की छाया को समाते हुए।
सागर हिलोरें ले रहा ,रवि उगने को तत्पर था।
मैने देखा लहरों को,रश्मि की अगवानी करते हुए।
सागर हिलोरें ले रहा, सूर्य रश्मियाँ बिखेर रहा।
मैने देखा प्रिय को ,अति आनन्दित होते हुए।
सागर हिलोरें ले रहा, रवि अपने चरम पर था।
मैने देखा यौवन को ,एक दूजे पे इतराते हुए।
सागर अदाएं दिखा रहा, रवि भी मुस्कुरा रहा था।
मैंने देखा इन दोनों को ,प्रेम किलोल करते हुए।
वायु भी मदमस्त थी ,लहरा कर नृत्यकर रही थी।
मैंने देखा प्रकृति को ,अद्भुत, रासलीला करते हुए।
सागर हिलोरे ले रहा, रवि बदली में जा छिपा।
मैंने देखा प्रेयसी को,पगलाई सी प्रिय को ढूंढते हुए ।
प्रेमी युगल मौज़ूद थे ,सौंदर्य देख अभिभूत थे।
मैने देखा प्रकृति को ,मस्त तस्वीरे खिंचाते हुए।
सागर बहुत शान्त था ,रवि अस्ताचल को चला।
मैने देखा प्रिय को , मौन आलिंगन करते हुए।
यह भी विदित है कि ये , दोनों अलग-अलग छोर हैं।
एक सूरज दूजा समंदर ,मिलन इनका अकल्पनीय है ।
एक जमीन पर एक आसमां में ,फिर भी कितने समीप है।
मैंने कल्पना से लिखा इनके, अस्तित्व को सराहते हुए।
स्नेहलतापाण्डेय 'स्नेह'
प्रतियोगिता के लिए
Chirag chirag
09-Dec-2021 04:56 PM
Nice written
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Seema Priyadarshini sahay
09-Dec-2021 04:30 PM
बहुत खूबसूरत रचना
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Swati chourasia
09-Dec-2021 06:48 AM
Very beautiful 👌
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